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सफ़लता का राज

 *सफलता का रहस्य* एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है? सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो. वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना. सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?” लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना” सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है. दोस्तों, जब आप सिर्फ और सिर्फ एक चीज चाहते हैं तो more often than not…वो चीज आपको मिल जाती है. जैसे छोटे बच्चों को देख लीजिये वे न past में जीते ह

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की आत्मकथा

 *"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित  *युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र*                     *(9 सितम्बर/जन्म-दिवस)*                   भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं. उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए. हिन्दी साहित्य के माध्यम से नवजागरण का शंखनाद करने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी में 9 सितम्बर, 1850 को हुआ था.                    इनके पिता श्री गोपालचन्द्र अग्रवाल ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे और ‘गिरिधर दास’ उपनाम से भक्ति रचनाएँ लिखते थे. घर के काव्यमय वातावरण का प्रभाव भारतेन्दु जी पर पड़ा और पाँच वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपना पहला दोहा लिखा.       *लै ब्यौड़ा ठाड़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान*       *बाणासुर की सैन्य को, हनन लगे भगवान्।।*                   यह दोहा सुनकर पिताजी बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया कि तुम निश्चित रूप से मेरा नाम बढ़ाओगे.                   भारतेन्दु जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थ

वीर दुर्गादास जी

  *वीर दुर्गादास राठौड़ जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन🙏🏻💐*   वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौर का नाम मेवाड़ ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण हिन्दुस्तान के इतिहास में त्याग, बलिदान, देश -भक्ति व स्वामिभक्ति के लिये स्वर्ण अक्षरों में अमर है। आगरा में ताजमहल के निकट पुरानी मंडी चौराहे पर वीर दुर्गादास राठौर की घोड़े पर सवार प्रतिमा स्थापित है।  मारवाड़ की स्वतन्त्रता के लिये वर्षों तक संघर्ष करने वाले वीर पुरुष दुर्गा दास राठौर का जन्म जोधपुर के एक छोटे से गाँव सलवां कलां में आसकरन जी राठौर के घर 13 अगस्त, सन् 1638 (श्रावण शुक्ल चतुर्दशी सम्वत् 1695) में हुआ था। इनके पिता आसकरन जी जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह की सेना में थे। अपने पिता की भाँति बालक दुर्गादास में भी वीरता के गुण कूट-कूट कर भरे थे।  एक बार जोधपुर राज्य की सेना के कुछ ऊँट चरते हुये आकरन के खेत में घुस गये। बालक दुर्गादास के विरोध करने पर चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास आग -बबूला हो गये और तलवार निकालकर एक ही पल में ऊँट की गर्दन उड़ा दी। बालक की इस वीरता की खबर जब जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह को लगी तो वे उस व

बल्लू जी चाम्पावत

  *✊एक वीर जिसका तीन बार हुवा अंतिम संस्कार* *#प्राण_जाए_पर_वचन_ना_जाये - बल्लू जी चाम्पावत  *👉जिस समय अमरसिंहः जी राठौड़ को जोधपुर से निकाला गया था, उस समय बल्लू जी चाम्पावत भी उनके साथ हो लिए, की इस संकट की घड़ी में आपका साथ नही छोड़ सकता हुकुम !!* *👉लेकिन राज्य मिलने पर अमर सिंह को छोड़ कर चले गए, की अब आपके पास राज्य है, सेना है, सब कुछ है, मेरी फिर कभी आवश्यकता हो, तो याद कीजिये, में अवश्य आऊंगा !!* *👉यहां से बल्लू जी मेवाड़ चले गए, जहां उन्हें मेवाड़ के सरदारों ने भूखे शेर से लड़वा दिया !! बल्लू जी ने शेर को तो फाड़ दिया, लेकिन वहां से भी यह कह के चले गए* *👉"यदि आपको मुझे लड़वाना ही था , तो शत्रु से लड़वाते, एक जानवर की हत्या का पाप मुझसे करवाने की क्या जरूरत थी ।।* *👉जाते समय राणा ने उन्हें एक घोड़ा भेंट किया, ओर बल्लू जी ने कहा, संकट के समय याद कीजिये राणा जी !! अवश्य हाजिर हो जाऊंगा ।।* *👉यहां अमर सिंह जी की शाहजहां के दरबार मे हत्या हो गयी ।* *👉अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए